मुनीवर फारूकी, एक युवा स्टैंड-अप कॉमेडियन और शायर, जो अपने चुटीले और विचारोत्तेजक शायरी के लिए जाने जाते हैं। उनकी कविताएँ अक्सर प्रेम, जीवन, समाज और राजनीति पर गहन टिप्पणियाँ करती हैं। भारत के सबसे बड़े रियलिटी शो बिग बॉस में अपनी भागीदारी के दौरान, फारूकी ने अपनी शायरी के माध्यम से लाखों दर्शकों के दिलों को जीत लिया। उनकी शायरी ने न केवल उनकी कवितात्मक प्रतिभा को प्रदर्शित किया, बल्कि उन्होंने बिग बॉस के घर के अंदर और बाहर कई महत्वपूर्ण मुद्दों को भी उठाया।
मुनीवर फारूकी की शायरी (Munawar faruqui shayari) की सबसे खास बात यह है कि वह अपनी शायरी के माध्यम से समाज में मौजूद विभिन्न समस्याओं पर बेबाक और स्पष्ट रूप से अपनी राय रखता है। वह अपनी शायरी में अक्सर सामाजिक और धार्मिक रूढ़ियों पर व्यंग्यात्मक हमला करता है और महिलाओं के सशक्तिकरण जैसे मुद्दों की वकालत करता है। उनकी शायरी में एक सहजता और ईमानदारी है जो दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
बिग बॉस के घर के अंदर, फारूकी ने कई ऐसे शेर सुनाए जो दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हुए।
Munawar faruqui shayari’s in hindi | मुनीवर फारूकी की शायरी
कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जहाँ दूरी ही बेहतर होती है।
खुद को पहचानने के लिए कभी-कभी अकेले रहना जरूरी होता है।
इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी है उसका अहंकार।
समाज में बदलाव लाने के लिए सबसे पहले खुद को बदलना होता है।
जिंदगी एक सफर है, इस सफर को जी भर के जीना चाहिए।
एक शायरी लिखी है
कभी मिलोगी तो सुनाऊंगा
तेरी सीरत साफ शीशे की तरह
मेरे दामन में दाग हजारों हैं
तू नयाब किसी पथर की तरह
मेरा उठना बैठना बाजारों में है
तेरी मौजूदगी का इहतिराम कर भी लूं
जब होगा रूबरू तो ये जज़्बात कहां छुपाऊंगा
एक उम्र लेकर आना
मैं खाली किताबें लेकर आऊंगा
तोड़ कर लाने के वादे नहीं
मैं अपनी कलम से सितारे सजाऊंगा
मेरी सब्र की इंतेहा पर शक कैसा
मैंने तेरे आने-जाने पर ता उम्र लिखी है
ज़मीन पे कोई ख़ास नहीं मेरा
तू एक बार क़ुबूल कर, मैं अपने गवाहों को आसमा से बुलवाऊंगा
एक शायरी लिखी है
कभी मिलोगी तो सुनाऊंगा।
आँखों का सुकून तो
किसी के दिल की ठंडक हो गया,
एहसास ना हुआ मुझे,
मैं तो पिघलता हुआ बर्फ हो गया,
एक मौका मिल ही गया मुझसे जलने वालों को,
जाते जाते उनकी जलन की राहत बन गया।
कोई ख़ास दुश्मनी नहीं मुझसे तुम्हारी
मेरे सपनों से छोटी है रियासतें तुम्हारी
मेरे पैरों को काटने की नाकाम कोशिश मुबारक हो
मेरे ख़ुदा से ऊंची नहीं है पहुंच तुम्हारी
उड़ना नहीं है, बस चलना सीख लूं।
जुल्म ना हो किसी पे मुझसे,
मैं वह रहम सीख लूं।
काबिल नहीं हूँ, जो कुछ मिला है,
डर है, कहीं चाल ग़मंद ना सीख लूं।
मेहनत, इज्ज़त, कोशिश, शिकायत सब कर ली मैंने
अब करना थोड़ा सब्र सीख लूं।
सुकून के ख्वाब मेरे नाम नहीं कर रही
ये दवा-ए-नींद अब मुझपे काम नहीं कर रही
मेरे दर्द का गुनाह उनके सर पर है
ये तरबीयत है मेरी जो उन्हें बदनाम नहीं कर रही।
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हाथ ठंडे, दिल में आग लिए बैठा हूँ
चेहरे पे हंसी, आँखों में आग लिए बैठा हूँ
परवाह नहीं मुझे इन बेनींद रातों की
मैं ख्वाबों को पूरे करने की ज़िद्द लिए बैठा हूँ
तेरे जलाल से अब तक ये दुनिया बे-खौफ थी
गुनाहों से भरी इनकी शर्में शौक थीं
जाने किस के सजदे से चल रहा है निजाम दुनिया का
क़यामत के लिए उस बच्चे की भूख बहुत थी
आँखों का सुकून तो
किसी के दिल का ठंडक हो गया
अहसास ना हुआ मुझे
मैं तो पिघलता हुआ बर्फ हो गया
एक मौका मिल ही गया मुझसे जलने वालों को,
जाते जाते उनकी जलन की राहत बन गया।
मेरे दर्दों का गुनाह तेरे पे है
उल्फत का मलाल उसके चेहरे पे है
बदल लिया था रास्ता मुझे देख कर
आज दुनिया-भर की निगाह मेरे पे है
फायदा उठाया है
मुझे नजर अंदाज भी किया है
सुना के फसाने झूठ के
मुझे बर्बाद किया है
मैं भी जिम्मेदार हूँ मेरी जिल्लत का
मैंने गैरों पर नहीं अपनों पर ऐतबार किया है
मैं बोझ लेकर चला हूँ उम्मीदों का
बड़ी मशक्कत से मंजिल दिखी है
रोशनी के नाम बस चिराग था पास
मैंने ये सुबह रात जागकर लिखी है
प्यार वही है, बस बताना छोड़ दिया
महफिल पसंद तेरी बस आना छोड़ दिया
कम जिद्दी नहीं है वफा ये मेरी
तूने जब से आजमाना छोड़ा
मेंने भी मानना छोड़ दिया
मैं अपनी करवातों का हिसाब लिए बैठा हूँ
मैं राज़दार उनके राज़ लिए बैठा हूँ
नहीं है ग़र्ज़ अब कोई परछाई बने मेरी
मैं अपने साए से नफ़रत किए बैठा हूँ
सिर्फ अंदाज़ा लगा ना सही नहीं
कहानी मेंने अब तक कही नहीं
अच्छे वक़्त पर आ गए तुम हमदर्द बनकर
खैर, ये ज़माना ही ऐसा है, ग़लती तुम्हारी नहीं
उसके इंतजार में लिखता हूँ अब मैं रुकूं कैसे
वो आज गली से गुजरा है, मैं आगे लिखूं कैसे
गमान-ए-हुस्न है शायद उनको खुद पे
अब मैं ईमान पर रहकर तक़ब्बुर सिखूं कैसे
खुद आवाज़ हूँ तेरे जैसा शोर नहीं
तिकने वाला हूँ, गुजर जाऊं वही दौर नहीं
तू करले लाख कोशिश मिटाने की
धूल हूँ, उड़ता रहूंगा
डूबने वाला पथ्थर नहीं
तुम ज़िद लिए बैठे हो मेरा नाम नहीं लोगे
फिर याद करके ये हिचकियां क्यों दे रहे हो।
दर्द देने वाले एक दिन जरूर डूबेंगे
मेरा यक़ीन तो समुंदर से भी गहरा है
दफ़न है मुझ में कितने रंज-ओ-ग़म,ना पूछो
बुझ बुझ के जो रोशन रहा,वो 'मुनव्वर' हूँ मैं
अब नहीं हैं हम चिराग़ों के मोहताज़
उसकी आँखें महफ़िलें रौशन करती हैं
मैं किताबें फिर से आलमारी में रख आया हूँ
सुना है वो बा कमाल इंसान पढ़ती है
प्यार वही है, बस बताना छोड़ दिया
महफिल पसंद तेरी बस आना छोड़ दिया
कम जिद्दी नहीं है वफा ये मेरी
तूने जब से आजमाना छोड़ा
मैंने भी मानना छोड़ दिया
लूट कर आबरू उसकी, ज़ालिम तुझे नींद कैसे आई होगी
बर्बाद कर उससे, घर जा कर तूने अपनी बहन से कैसे नजर मिलाई होगी
रहमत हज़ार लेकिन मोहब्बत से महसूस रहूँगा
मत पूछो मुझसे शिकायत उनकी, खुदा से करूँगा
मेरे नाम का जिक्र हो तो दुआ भेजना, सुकून की
मैं मुनव्वर मरने के बाद भी मशहूर रहूँगा
मेरे ग़म को मेरी हंसी में दबा बैठा है
राहतों का दौर मेरी राहों में लूटा बैठा है
वो क्या ज़लील करेगा मेरी ज़ात को
जबकि मेरा खुदा मेरा गुनाह माफ किया बैठा है
मेरे ग़म को मेरी हंसी में दबा बैठा है
राहतों का दौर मेरी राहों में लूटा बैठा है
वो क्या ज़लील करेगा मेरी ज़ात को
जबकि मेरा खुदा मेरा गुनाह माफ किया बैठा है
सोच हूँ, नादान हूँ
सब्र करने वाला तो कभी बेकारार हूँ
तेज़ शायर तो कभी बेजुबान हूँ
खड़ा होना बस का नहीं तेरे,
तू अमीर सही, मैं नयाब हूँ.
मेरे ग़म को मेरी हंसी में दबा बैठा है
राहतों का दौर मेरी राहों में लूटा बैठा है
वो क्या ज़लील करेगा मेरी ज़ात को
जबकि मेरा खुदा मेरा गुनाह माफ किया बैठा है
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कोई बचा नहीं ज़मीन पर
लयाक ए ऐतब्बार मेरा
लेकिन तेरे हर सितम का गवाह
मैंने पुरा आसमां रखा है…
Tere jaisa Noor hai kahan? #MunawarFaruqui #BiggBoss17 pic.twitter.com/vjHvOr0HL6
— munawar faruqui (@munawar0018) January 21, 2024
सिरहाना खली मुझे याद तेरी आ रही है भूख मर्र चुकी है फ़िक्र तेरी खा रही है
मैं फरेब से फरेब करलू
तेरे बाद खुदको केद करलू
तूजे भी इश्क था मेरी इस लिखाई से
क्या इस ख़ूबी को अब मैं ऐब करलू ?
दर्द ऐसे छुपाते हैं
जैसे कोई गुनाह किया हो
वो हर रात घर मुस्कुराता
चेहरा लिए चलते हैं.
क़ाबिल होता तो दुनिया तेरे पास रख देता
जाने से बेहतर तू मेरे सर पर हाथ रख देता
तुझे लगा मैं दिल की बात छुपाई
तू एक बार दिल तो लगाता
मैं किसे अपने बे-हिसाब रख देता.
उसके इंतजार में लिखता हूँ अब मैं रुकूं कैसे
वो आज गली से गुजरा है, मैं आगे लिखूं कैसे
गमान-ए-हुस्न है शायद उनको खुद पे
अब मैं ईमान पर रहकर तक़ब्बुर सिखूं कैसे
मुनीवर फारूकी की शायरी ने न केवल बिग बॉस के घर के अंदर बल्कि घर के बाहर भी एक बड़ा प्रभाव डाला। उनकी शायरी को सोशल मीडिया पर खूब पसंद किया गया और कई लोगों ने उनकी प्रशंसा की। उनकी शायरी ने युवाओं को अपनी आवाज उठाने और अपनी राय रखने के लिए प्रोत्साहित किया।
Munawar faruqui shayari का प्रभाव इतना अधिक था कि कई लोगों ने उन्हें “बिग बॉस का शायर” का खिताब दे दिया। उनकी शायरी ने उन्हें एक कवि के रूप में एक नई पहचान दी और उन्हें युवाओं के बीच एक आदर्श बना दिया।
Munawar faruqui shayari का बिग बॉस में उदय इस बात का सबूत है कि शायरी अभी भी एक शक्तिशाली माध्यम है जो लोगों के दिलों को छू सकता है और समाज में बदलाव ला सकता है। फारूकी की शायरी ने हमें यह दिखाया है कि कविता सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा हथियार भी हो सकता है जिससे हम दुनिया को बदल सकते हैं।
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